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आजादी के पचास वर्षों के अन्दर हम भूल गये गणेश से गाँधी को | आज गाँधी केवल जयंती के अवसर पर ही याद आते हैं | अगर भारत सरकार ने गाँधी जयन्ती पर सार्वजनिक अवकाश न रक्खा होता तो हमारे बच्चों को यह भी नहीं मालूम होता कि मोहनदास कर्मचन्द गाँधी जिन्हें हम महात्मा गाँधी कहते हैं, हमारे राष्ट्रपिता थे जिहोंने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करके हमें स्वाधीनता दिलाई थी | गणेश शंकर विद्यार्थी की क्योंकि राष्ट्र या प्रान्त स्तर पर जयन्ती नहीं मनायी जाती है इसीलिए हमारे पीढ़ी इन्हें भूल गई | मैंने एक अखबार के लेख में पढ़ा था कि एक बच्ची अपने पिता से पूछती है कि जी.एस.वी.एम. मेडिकल कालेज का पूरा नाम क्या है तो पिता ने कुछ देर सोचकर कहा कि शायद यह किसी सेठ का संक्षिप्त नाम है | मुझे पढ़कर कोई आश्चर्य या दुःख नही हुआ क्योंकि हमने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे गणेश शंकर विद्यार्थी को हमारे बच्चे याद रखें | जीवन के तीस वर्षों के अन्तराल के पश्चात् जब में 1989 में अपने गांव के पास आया तो ऐसा लगा कि जैसे मेरा बचपन लौट आया हो मेरे साथ ही मेरे माता- पिता भी गांव आ गये फिर हर सप्ताह गांव आने का अनवरत सिलसिला प्रारम्भ हो गया और समय के साथ- साथ में अपने गांव एवं उसकी समस्याओं से जुड़ता चला गया | कहते हैं वतन की मिट्टी की याद उन्हें अधिक आती है जो इससे दूर हो जाते है | मेरे साथ भी शायद यही हुआ हो | में अपने को भाग्यशाली मानता हूं कि 30 वर्षों के पश्चात् अपने गांव वापस आ गया | यह शायद देवकृपा ही थी अन्यथा लोग चाह का भी नहीं आ पाते | वर्ष 1958 में जब मैंने भास्करानन्द इण्टर कालेज नरवल से इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की थी तो एक बड़ा प्रश्न था अब कहां जाऊं या क्या करूं ? आज भी वही प्रश्न बच्चों के सामने हैं | आजादी के इतने वर्षों के पश्चात् भी पूरा क्षेत्र उच्च शिक्षा से वंचित हैं | अतः मैंने सोचा नई पीढ़ी को नई दिशा दिखाने का एकमात्र रास्ता उच्च शिक्षा के द्वार खोलना है | विकास समिति नरवल का गठन एवं उसके माध्यम से इन्दिरा गांघी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय नई दिल्ली द्वारा मान्यता प्राप्त स्टडी सेन्टर का संचालन प्रथम प्रयास थे | IGNOU का संदेश "शिक्षा आपके द्वार पर" विशेष आकर्षण एवं जाग्रति का माध्यम न बन सका | IGNOU पाठ्यक्रम शहरी विद्यार्थियों की रूचि विशेष को देखकर बनाया गया था इसलिये हिन्दी बाहुल्य प्रान्तों में इसका आकर्षण नगण्य सा ही रहा | इसी बीच विकास समिति नरवल ने गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रस्तर प्रतिमा जयपुर से बनवा कर मंगवा ली थी | उद्देशय था कि गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा स्थापित गणेश सेवा आश्रम नरवल में उनकी मूर्ति की स्थापना की जाये | परन्तु गणेश जी को समर्पित इस आश्रम के प्रबन्ध- तंत्र ने विकास समिति के पस्ताव को कुछ शर्तों के साथ अस्वीकार कर दिया | आज तक गणेश सेवा आश्रम अपने संस्थापक की मूर्ति से वंचित है | इस घटना ने विकास समिति नरवल को एक नई दिशा दी और यह संकल्प लिया गया कि गणेश जी के नाम से एक महाविद्यालय कि स्थापना कि जाये जहाँ उनकी इस प्रस्तर प्रतिमा को स्थापित किया जाये | देखते देखते अपार जनसहयोग से ग्राम टिकरा द्वारा प्रदत्त भूमि पर इस महाविद्यालय की नींव रखी गयी और जुलाई 1992 main ग्यारह छात्रों की संख्या से महाविद्यालय ने अपना प्रथम शैक्षिक सत्र प्राम्भ किया |
स्वर्गीय गणेश को समर्पित यह महाविद्या कहां तक क्षेत्रीय विद्यार्थियों के लिये आकर्षण का केन्द्र बनेगा यह तो भविष्य ही बतायेगा | परन्तु मेरा स्वप्न है कि जिस तरह गणेश शंकर विद्यार्थी ने गुलामी के खिलाफ आजादी का दीपक नरवल से लगे 140 गांवो में जलाया था उसी तरह यह महाविद्यालय उन 140 गांवो के बच्चों के लिये उच्च शिक्षा की एक तीर्थस्थली बने | अगर इस महाविद्यालय से स्वर्गीय गणेश शंकर सरीखा एक भी विद्यार्थी निकला तो मैं समझूंगा कि इस घरती ने अपना ऋण ब्याज समेत वापस कर दिया | परन्तु मैं आपसे ही पूछता हूं क्या यह सम्भव हैं ? हजारों वर्षों जब धरती तपती थीं तो गणेश शंकर विद्यार्थी जैसा एक नामवर पैदा होता है | फिर भी मुझे पूर्ण विश्वास है कि :
हर पत्थर की तक़दीर संवर सकती है |
शर्त यह है कि उसे सलीके से तराशा जाए | |
जय गणेश,
तुम्हारा ही,
(विश्वनाथ)
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