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बचपन के उन वर्षों ने मेरे ऊपर एक अमित छाप छोड़ी थी | माँ से विशेष लगाव अपनी मती से लगाव का विशेष कारण बना | माँ से लगाव हम सबको अपनी मती से जोड़ता है | शायद इसीलिए हम इसे मातृभूमि कहते है ? राष्ट्र एवं देश बहुत बड़े शब्द हैं ? बहुत महान आत्मायें ही इनसे अपने आपको जोड़ पाती हैं ? साधारनतया मनुष्य मातृभूमि की संज्ञा अपने गांव से ही देता है | मेरा गांव ही मेरा देश है, यही मेर विश्वास है | और अगर हम मनुष्य ऐसा सोचने लगे तो गांवों से शहरों की तरफ बढ़ता हुआ यह पलायन कुछ तो थमेगा | पलायन ही शायद आज के मानव की नियति सी बन गयी है | हम भाग रहे हैं गांव से शहरों की तरफ, भारतीयता से आधुनिकता की ओर, मानवता से पशुता की ओर - हर उस तरफ जो हमें कमजोर करता है | यह दौड़ हमें कहां ले जायेगी, किसी को एक पाल भी सोचने की फुर्सत नहीं | हमने जीवन की गाड़ी एक ढलान पर डाल दी है जहाँ से हमें केवल फिसलना ही फिसलना है | वो सभी सम्बल जिससे जीवन में स्थिरता आती है हमने कब के छोड़ दिये | आज मानव सबसे अधिक असहाय दिखता हैं | आर्थिक एवं बौद्धिक सम्पन्नता के बीच भी हमारी स्थिति भिखारियों जैसी है | धर्म हो जीवन को संयत करता है और सन्तुलन ही जीवन में स्थिरता लता है | स्थित प्रज्ञ मानव को ही दिशा बोध होने पर स्वप्न जागते हैं और स्वप्नों की संरचना केवल संकल्पों द्वारा ही सम्भव है | संकल्पों एवं स्वप्नों के क्षितिज पर सफलता आपका इंतजार करती है | गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैं - अपने -अपने धर्म का पालन, चाहे वो अधुरा ही क्यों न हो, दूसरे के धर्म के अनुसरण से श्रेष्ण हैं | किसी को क्या तकलीफ होती है अपनी- अपनी धर्म परायणता में | कोई भी धर्म दूसरे के धर्म की अवहेलना नहीं सिखाता है | जब हम दूसरे के धर्म की तरफ एक अंगुली उठाते हैं तो चार अंगुलियां स्वयं की आपकी तरफ उठ जाती हैं | जब हम दूसरे के धर्म की आलोचना करते हैं तो स्वयं ही अपने धर्म की अवेहलना का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं | मानवता का मूल मंत्र धार्मिक सहिष्णुता है | श्री गणेश शंकर विद्यार्थी धार्मिक सहिष्णुता के लिए शहीद हो गये | तभी तो वे महामानव कहलाये |
नरवल एवं इससे लगा हुआ क्षेत्र धन्य था कि इस महापुरुष ने इसे अपनी कर्मभूमि चुना | श्रीकृष्ण की ब्रजभूमि सदृश्य ही श्री गणेश की कर्मभूमि का कण- कण उनकी अनेक गाथाओं से भरा पड़ा है | गणेश जी ने नरवल से ही आजादी की मशाल जलाकर क्षेत्र के हर गांव एवं हर घर, में गरीबी से जूझती हुई जनता की आजादी के लिए खड़ा किया | सुना है नरवल थाने में सर्वप्रथम तिरंगा फहराया गया | यहीं के स्वर्गीय श्याम लाल जी पार्षद के "झंडा ऊंचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा" पूरे देश में बच्चे- बच्चे की जुबान में, स्वतंत्रता संग्राम का एक राष्ट्रीय गान बना | जिन सिद्धान्तों के लिए गणेश जी जिये उन्हीं के लिए वो शहीद हो गये | उनकी मौत भी लोगों के लिए ईष्या का कारण बन गयी | तभी तो गाँधी जी ने कहा था कि गणेश शंकर सरीखी मौत मुझे क्यों नही मिली |
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