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श्री गणेश - नामकरण संस्कार

एक स्त्री मन्दिर में जाकर पुजारी से पूछ रही थी कि प्रातः काल जो स्वप्न देखा जाता है उसका क्या फल होता है तो पुजारी ने कहा :-
तत्रादो कालयामानं विचारं कुर्महे वयम् |
तत्र च प्रथमे यामे स्वप्नं वर्षेण सिध्यति ||

यह श्लोक कहता है कि हमें काल और प्रहर का विचार करना चाहिए | रात्रि के प्रथम प्रहर मे देखा हुआ स्वप्न एक वर्ष मे फल देता है |
द्वितीय माषे षट्केन षड्भिः पक्षेस्तृतीय के |
चतुर्थ त्वेक मासेन्न प्रत्यूषे तद्विनेन च ||

द्वितीय प्रहर में देखा हुआ स्वप्न छः माह में फल प्रदान करता है और तीसरे प्रहर का स्वप्न तीन माह में फल देता है | किन्तु चौथे प्रहर अर्थात प्रभात काल में देखा हुआ स्वप्न उसी दिन फल प्रदान करता है तो कल्याणी तुम्हारा स्वप्न शुभ है | अब तुम बताओ कि तुमने क्या स्वप्न देखा है तब मैं उसका शुभ या अशुभ फल तुम्हें बता दूंगा |
स्त्री ने कहा, पंडित जी आज प्रात: काल हमने यह देखा कि गणेश जी के मस्तक में चन्दन लगा है और वह बादलों के बीच में खडें होकर मेरी पुत्री गोमती की तरफ देख रहे हैं | पुजारी जी बोले अच्छा तो सुनो
राजानो ब्रम्हणा गावों देवाश्च पितरस्तथा |
स्वप्ने ब्रुयुर्यच्च यस्य तत्तस्यान्नैव संशय: ||

स्वप्न में राजा, ब्राम्हण, गौऐं, देवता और पितर जिस को जो कुछ भी कहते हैं वह निःसंदेह वैसे ही होता है |
कृष्णागरु च कर्पूर कस्तूरी चंदनाबुदाः |
यस्य दृष्टिपथं यान्ति लिप्यन्ते वा समानमाक ||

काला अगर, कपूर, कस्तूरी, चन्दन और बादल जिस व्यक्ति को स्वप्न में दिखाई दे अथवा जो इन्हें मस्तक में लगाता है तो वह लोगों में सम्मानित होता है |
अतः कल्याणी आपकी पुत्री भाग्यवान है उस पर गणेश जी की द्रष्टि है यदि वह गर्भवती है तो निश्चय ही गणेश जी उसे बेटे के रूप में पैदा होंगे ऐसा शास्त्र कहता है | आप भाग्यशाली हैं इसका फल भी आपको आज ही देखने को मिलेगा | पंडित जी यदि आपकी बात सच निकली तो हम अपने नाती का नाम गणेश शंकर ही रखेंगी | स्त्री ने पंडित जी को दक्षिणा दी | पुजारी ने कहा आपका कल्याण हो | घर आने पर सुना कि पुत्र रत्न हुआ है | वह प्रसन्नता से विभोर हो गई और उन्होंने उस बालक का नाम गणेश ही रखा |